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श्रीनगर जाकर तिरंगा लहराने को व्याकुल संघी ‘बहादुरों’ को शायद याद नहीं है कि उनके गुरु गोलवलकर ने राष्ट्रध्वज को ‘मनहूस’ और ‘देश के लिए हानिकारक’ कहा है। भारत की आज़ादी के मौके पर तिरंगा ध्वज का विरोध करते हुए 14 अगस्त 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ में उन्होंने लिखा-‘‘तीन का शब्द अपने आप में ही मनहूस है और तीन रंगों का झंडा निश्चित रूप से एक देश के लिए बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और उसके लिए हानिकारक होगा।’’ यहां दो सवाल बनते हैं। पहला यह कि क्या भाजपा और उसके हमसंघी संगठन अपने प्रिय गुरुजी के बताये ‘धर्म-पथ’ से विचलित हो रहे हैं? दूसरा सवाल यह कि इन दिनों अचानक झंडा फहराने का ख़्याल कैसे उपज पड़ा जबकि पूरे देश में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। नीरा राडिया जैसे लोगों के इशारे पर सारा कामकाज चल रहा है-मंतरी से संतरी तक, अख़बार से सरकार तक। सोनिया गांधी अरबपतियों से राष्ट्रनिर्माण के लिए दान करने की अपील कर रही हैं। पूरे पसमंज़र पर निगाह दौड़ाकर देख लीजिए कि इन भयानक हालात में किसी संगठन को क्या वही काम करना चाहिए जिसमें भाजपा के लोग इन दिनों दिलो-जान से मुब्तिला हैं? किसी सांस्कृतिक संगठन को क्या यही काम करना चाहिए? तिरंगा फहराने के संघी-भाजपाई इरादों की चर्चा हम आगे करेंगे, पहले ‘विचलन’ की सच्चाई देख ली जाए।
तरुण विजय को आप जानते हैं। भाजपा के सांसद हैं। संघी हैं। इसी इतवार को ‘जनसत्ता’ में उन्होंने लिखा है कि-‘‘इस तिरंगे से आतंकवादी तालिबान चिढ़ते हैं और माओवादी नक्सली भी। हर देशद्रोही और भारत का शत्रु तिरंगे से चिढ़ता है और हर देशभक्त दुनिया के किसी भी कोने में तिरंगे को देखकर सम्मान से उसे प्रणाम करता है। तिरंगे में हमारे प्राण हैं, हम तिरंगे के लिए प्राण देने में भी संकोच नहीं करते।’’ अब आप तय कर लीजिए कि गुरुजी क्या हैं? तरुण विजय तो कह रहे हैं कि गोलवलकर को ‘भारत का शत्रु’ समझना चाहिए! यही मतलब है उनकी बात का। दरअसल, यह पैंतरेबाजी है। कुछ दिन बाद यही तरुण विजय ‘प्राण देने’ के बजाय जब ‘प्राण लेने’ का तर्क दे रहे होंगे तो गुरुजी दूसरे मुंह से बोलेंगे। यही अनेक-मुखता है। कुछ लोग इसी को ‘अनेकता में एकता’ कहते हैं। किसी भी हद तक गिरने का तैयार इस अनेकमुखी जंतु का एक अन्य चेहरा स्वामी असीमानंद हैं। स्वामी जी के तो मानो ज्ञान चक्षु ही खुल गए हैं। उन्होंने तो आरएसएस की असलियत ही बखान दी। हालत यह है कि संघियों की समझ में नहीं आ रहा कि मुंह कहां छुपाएं। सबकुछ बेपर्दा हो गया। कहां गए वे पहलवान जो बम विस्फोट का नाम सुनते ही ‘मुसलमान, मुसलमान’ चिल्लाने लगते थे? कहां हैं आडवानी, उमा भारती, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, सुदर्शन और मोहन भागवत? नरेंद्र मोदी और अशोक सिंघल को कितना बड़ा अपराधी समझा जाए? असीमानंद के बयान से साफ ज़ाहिर है कि समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्ज़िद समेत तमाम बम धमाकों के सूत्राधर यही लोग हैं! अख़बारवाले सुनील जोशी और रामजी कलासांग्रा की ख़बरें छाप रहे हैं। सीबीआई यहां-वहां छापा मार रही है। बेमतलब। अरे, सूत्रधार और संचालकगण तो यहां बैठे हैं दिल्ली में, तुम वहां भोपाल और कानपुर में क्या तलाश रहे हो यार। भाजपाइयों की धृणित आपराधिक तश्वीर इतनी साफ हो चुकी है कि वे ‘कहां छुपाएं-क्या छुपाएं’ की पोजीशन में पहुंच गए हैं। तिरंगा फहराने का अभियान छेड़कर संघियों ने यह साबित कर दिया है कि उनके लिए देशभक्ति के मायने क्या हैं? तिरंगे के नाम पर किसकी आंख में धूल झोंक रहे हो भाई जी?
अपने देशद्रोही-आतंकी चेहरे को तिरंगे की आड़ में कब तक छुपाओगे भाई जी? संघी देशभक्ति की विडंबना देखिए कि ये किस चीज़ को अपना वतन, अपना देश समझते हैं? इन्हें इस मुल्क की किन चीज़ों से प्यार है? आप जानते हैं कि सेज़ क्षेत्र में भारत सरकार का श्रम या प्रशासन संबंधी कोई नियम-कानून नहीं लागू होता। आप यह भी जानते हैं कि कांग्रेस सरकार ‘लिबरल’ होकर देसी-विदेशी अमीरों को सेज खोलने की अनुमति देती चली जा रही है। ज़मीनों की इस खुली लूट के खि़लाफ पूरे देशभर में बड़ी तादाद में लोग लगातार संघर्षरत हैं। ज़रा याद कीजिए-सेज़ के नाम पर कॉरपोरेट अÕयाशी का अड्डा खोलने के विरोध में भाजपा या संघ के ‘राष्ट्रवादियों’ ने अब तक कुछ किया हो? क्या यह देशभक्ति का विषय नहीं है? क्या यह तिरंगा फहराने का विषय नहीं है? सेज़ के अंदर घुस-घुसकर लहराइये तिरंगा। 2009 में 17385 किसानों ने वही कर लिया, जो 2008 में 16000 किसानों ने किया था। यानी आत्महत्या। इन किसानों के खेतों में और झोपड़ियों पर जाकर फहराइये तिरंगा तो हम भी समझें कि हां, आपको अपनी धरती से प्रेम है। किसानों के लिए निकालिए कभी ‘एकता यात्रा’। इस देश के 84 करोड़ लोग रोज़ाना 20 रुपये में गुज़र-बसर कर रहे हैं। इनकी ग़रीबी और भुखमरी के खि़लाफ कौन लेकर चलेगा तिरंगा? इस देश के किसानों और मज़दूरों की मेहनत की कमाई के करीब 23 लाख करोड़ रुपये विदेशी बैंकों में जमा कर रखे हैं गिरहकटों ने। इसके विरोध में निकलिये तिरंगा लेकर। सुरेश कलमाडी के घर में कौन गाड़ेगा तिरंगा? मुकेश अंबानी के 5000 करोड़ के 27 मंजिला घर पर कौन फहरायेगा तिरंगा? अछूतों और आदिवासियों के लिए कौन लगाएगा नारा? यह सरकार कॉरपोट्स को हर साल बजट में हज़ारों करोड़ रुपयों की छूट दे रही है। निकालिए जुलूस। कीजिए विरोध। संसद और संसद वेफ बाहर लड़ना चाहिए था भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए, लड़ रहे हैं जेपीसी-ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी-के लिए। ये जनता की आंख में धूल झोंकना नहीं है तो और क्या है? चारों ओर मची लूट-मार में हिस्सा ले रहे ये लोग देश के दुश्मन नहीं तो और क्या हैं? जामिया नगर इनकाउंटर से लेकर आज़मगढ़ से हैदराबाद तक तमाम नौजवानों की गिरफ्तारी और प्रताड़ना का वह पूरा दौर याद कीजिए-किसको बदनाम करने के लिए किए गए थे वे बम विस्फोट? किसलिए? वोट लेने के लिए? चुनाव जीतने के लिए? कुर्सी चाहिए? दलाली भकोसना चाहते हो? हिंदुओं के नाम पर बिजनेस कर रहे हो? राम को इस्तेमाल कर रहे हो? उन धमाकों में जो लोग मारे गए, उनका जिम्मेदार कौन है? हत्यारों की हिमाकत देखिए-हम लोगों को देशभक्ति और राष्ट्रवाद का पहाड़ा पढ़ा रहे हैं। क्या ये लोग भारत के राष्ट्रध्वज को सलामी पेश करने लायक हैं? साथियो! आप देखिए कि संसद के अंदर और बाहर तमाम मसलों पर कांग्रेस और भाजप के बीच किस तरह की जुगलबंदी चल रही है। दोनों एक दूसरे को ‘सपोर्ट’ कर रहे हैं। ‘मिलीजुली लतियौवल’ इसी को कहते हैं। यह नहीं समझना चाहिए कि कांग्रेसी, भाजपाइयों से किसी भी मायने में कम देशभक्त हैं। एक तरफ रेड्डी बंधु हैं, बेलारी है, ताबूत घोटाला है, गुजरात है, नरेंद्र मोदी हैं, दूसरी तरप़फ कलमाडी हैं, आदर्श सोसायटी है, कांग्रेसी राज्यों में ही सबसे अधिक मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी है, कपिल सिब्बल हैं…। विस्फोट के इन मामलों में कांग्रेस के लोग भी शामिल हो सकते हैं! गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की संप्रभुता, संपदा और सौहार्द्र को गिरवी रखनेवालों के खि़लाफ जनगोलबंदी और जुझारू संघर्ष ही इस समय सच्चे अर्थ में देशभक्ति है। आइए सच्चे लोकतंत्र और देशभक्ति के पक्ष में अपनी मुहिम को तेज़ करें।
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